Sangeet : उनकी आवाज़ के पहलू में भी नींद आती है

Bindash Bol

ध्रुव गुप्त
(आईपीएस) पटना

हिन्दी सिनेमा के गायक-गायिकाओं की पिछली सदी के तीसरे और चौथे दशक की शुरूआती पीढ़ी और पांचवें तथा छठे दशक के सुनहरे दौर की दो पीढ़ियां ऐसी थीं जिन्होंने हिंदी फिल्म संगीत को हमारे जीवन का अंतरंग हिस्सा बना दिया। इन्होंने एक ऐसा आकाश दिया जहां हमारी कल्पनाएं और ख्वाहिशें उड़ान भर सकती थी। एक ऐसा एकांत कोना जहां सिर छुपाकर हम अपने सुख-दुख, प्रेम, विरह, उल्लास, व्यथा और उदासी को अभिव्यक्ति देते रहे। इन दोनों ही पीढ़ियों के फनकारों में अब शायद कोई भी हमारे बीच नहीं हैं। नीचे की इस तस्वीर में उनमें से ज्यादातर को एक साथ, एक ही फ्रेम में देखना एक बहुत दुर्लभ अहसास है। तस्वीर की आगे की पंक्ति में खड़ी हैं जोहरा बाई अंबालेवाली, राजकुमारी, अमीरबाई कर्नाटकी, हमीदा बानो, गीता दत्त, लता मंगेशकर और मीना कपूर। पिछली पंक्ति में हैं शैलेश मुखर्जी, तलत महमूद, दिलीप ढोलकिया, मोहम्मद रफ़ी, एस.डी बातिश, जी.एम दुर्रानी, किशोर कुमार और मुकेश। संगीत के उस दौर की स्मृतियों के साथ हमारी अपनी भावनाओं की दुनिया के अभिन्न साथी रहे तस्वीर के इन तमाम फ़नकारों और इसमें अनुपस्थित के. एल सहगल, पंकज मलिक, नूरजहां, शमशाद बेगम, सुरैया, हेमंत कुमार, मन्ना डे, महेंद्र कपूर को हमारा सलाम, मेरे एक शेर के साथ !

गरचे दुनिया ने ग़म-ए-इश्क़ को बिस्तर न दिया
उनकी आवाज़ के पहलू में भी नींद आती है !

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