- श्रावण में शिव परिचर्चा
- ॐ नमः शिवाय
Sawan : भगवान शिव एक परम त्यागी योगी और समाज के लिए समर्पित जीवन का आदर्श स्वरूप है, जब हम भगवान शिव का स्मरण करते हैं, तो हमारे सामने एक ऐसा स्वरूप आता है जो त्याग, तपस्या, योग, और करुणा का प्रतीक है। वे न केवल देवों के देव “महादेव” हैं, बल्कि ऐसे योगी हैं जिन्होंने समस्त ब्रह्मांड की चिंताओं को स्वयं पर लेकर भी वैराग्य और संतुलन को नहीं छोड़ा।
भगवान शिव का सम्पूर्ण जीवन त्याग और समर्पण से परिपूर्ण है। वे कैलाश पर्वत पर विराजमान हैं — न महलों में, न विलासिता में। उनके पास न आभूषण हैं, न भोग-विलास; उनके गहने हैं — नाग, भस्म, रुद्राक्ष और शांति। उन्होंने सब कुछ छोड़ दिया, ताकि संसार को यह सिखा सकें कि सच्चा सुख बाह्य पदार्थों में नहीं, आत्मिक शांति में है।
वे एक गृहस्थ भी हैं, परन्तु गृहस्थ होकर भी पूर्ण योगी हैं। उनका परिवार — माता पार्वती, गणेश और कार्तिकेय — एक आदर्श वैवाहिक और पारिवारिक संतुलन का प्रतीक है, जिसमें धर्म, सेवा और संयम का समावेश है।
योग और तपस्या का प्रतीक
शिव को आदियोगी कहा गया है। उन्होंने ध्यान, योग और तप द्वारा आत्मा को परमात्मा से जोड़ने की प्रक्रिया का मार्ग दिखाया। वे स्वयं समाधि में रहते हैं, परंतु जब भी संसार में संकट आता है, वे भस्मासुर को रोकते हैं, समुद्र मंथन में विषपान करते हैं, या त्रिपुरासुर का संहार करते हैं।
उनका योग जीवन कर्म और त्याग का संतुलन है। वे निष्काम कर्म के प्रतीक हैं — जो करें, पर फल की आकांक्षा न रखें।
समाज के लिए समर्पण एवं लोकहितैषी देवता है शिव
शिव केवल ब्रह्मांड के देवता नहीं हैं, वे जन-जन के भगवान हैं। चाहे वह रावण हो या भिलनी, चांडाल हो या साधु — भगवान शिव भक्त के भाव को ही प्रधानता देते हैं। वे जाति, रूप, पद और अवस्था नहीं देखते। यही कारण है कि उन्हें “भोलेनाथ” कहा जाता है, सरल, सहज और सुलभ है महादेव, समाज के कल्याण हेतु जब समुद्र मंथन में कालकूट विष निकला, तो शिव ने उस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया, ताकि समस्त सृष्टि सुरक्षित रहे। यह त्याग और लोकहित का ऐसा उदाहरण है, जो अनंत काल तक प्रेरणा देता रहेगा।
इस श्रावण मास में सभी को शिव से जीवन जीना सीखना चाहिए।
भगवान शिव का जीवन हमें सिखाता है कि त्याग में ही स्थायी सुख है, और समर्पण में ही परम प्राप्ति। वे योग के सहारे संसार से जुड़ते हैं, परंतु उससे बंधते नहीं। वे प्रेम करते हैं, पर आसक्त नहीं होते। वे संहार करते हैं, पर केवल अज्ञान और अन्याय का।
आज जब समाज भोग, लालच और स्वार्थ की ओर अग्रसर है, तब भगवान शिव का वैराग्य, विवेक और लोकसेवा का जीवन हमें पुनः याद दिलाता है कि मनुष्य का सबसे बड़ा धर्म है — स्वयं को जानना और दूसरों के लिए जीना।
“ॐ नमः शिवाय” – यही मंत्र है आत्मशांति और सामाजिक जागरूकता का।
भगवान शिव द्वारा समाज कल्याण के लिए दिए गए कई मंत्र, उपदेश और प्रतीकात्मक कार्य हैं, जो हमें धर्म, करुणा, त्याग और समत्व का मार्ग दिखाते हैं। संस्कृत में उनके द्वारा समाज कल्याण के लिए दर्शाए गए कुछ प्रमुख मंत्र सूत्र को हर व्यक्ति को जानना चाहिए…।
- लोकहितं मम धर्मः।
(लोक का हित ही मेरा धर्म है।” - शिवो भूत्वा शिवं यजेत्।
“स्वयं शिवस्वरूप होकर शिव की आराधना करो।”
(भावार्थ: पहले स्वयं में शुद्धता लाओ, तभी समाज को दिशा दे सकोगे) - सर्वभूतहिते रतः शिवः।
शिव वह है जो सभी प्राणियों के कल्याण में रत रहता है। - त्याग एव शिवस्य स्वरूपम्।
“त्याग ही शिव का मूल स्वभाव है।” - शिवः समत्वं दर्शयति।
“शिव समानता का संदेश देते हैं।”
(शिव सभी जातियों, वर्गों, लिंगों और प्राणियों को एक समान दृष्टि से देखते हैं) - न हि ज्ञानात्परं पवित्रम्।
“ज्ञान से बढ़कर कुछ भी पवित्र नहीं है।”
(शिव का तीसरा नेत्र ज्ञान का प्रतीक है)
भगवान शिव का जीवन और दर्शन यह बताता है कि समाज का कल्याण केवल शक्ति या भक्ति से नहीं, अपितु त्याग, ज्ञान, समता और सेवा के समन्वय से है।
