सुनील श्रीवास्तव
Sawan : आजी को पता ही नहीं चला कि सावन बीत गया .वह भी पता नहीं लगता अगर लोटन का बेटवा न बताया होता कि भादों लग गया .आजी तो यही समझ रही थीं की अभी सावन है . आजी बड़े अचरज में .
सावन बीत गया .कब आया ,कब गया ,मालूम ही नहीं पडा .सावन के आने की भनक तक नहीं लगी . वह तो भादों आया, तो लोटन के बेटवा से पता चला कि इस साल भी सावन आया था .सावन पहले आता था .आते ही ननद भौजाई सब पगला जाती थीं .हरहराय के पानी बरसता था कि हफ़्तों ओरी चूना बंद नहीं होती थी. कपारे से नरिया थपुआ खिसकने लगता था. घरे में की कोनियाँ चाहे जितना ठीक कराओ ,बरसात में चूती ज़रूर थी . तब घर- घर शौचालय नहीं था ,दिशा फराकत के लिए जगह खोजनी पड़ती थी .पानी दुआरे से लेकर ताल तक भरा रहता था .मछली खाते -खाते जीव ऊब जाता था .ज्यादात्तर सिधरी मिलती थी . तरकारी की ज़रुरत ही नहीं होती थी .चौतरफा पहरा लग जाता था .हर- घर में एक पहरा मछरी तो आराम से पहुँच जाती थी . बब्बा कहते थे कि आसमान से मछरी गिरती है । इसी महीने भगवान जी मछरी को भेजते हैं मृत्यु लोक में ।भोले बाबा का महीना है साठी,सांवा सब खेत में .पूरा सीवान हरा हो जाता था .ऊपर बदरी , नीचे छतरी .
यही काशी लाल थे सवेरे सवेरे पोखरी के किनारे बैठ जाते थे .पहले खुरपी से किनारे खोद कर केचुआ निकालते थे .आखिर चारा के लालच में आदमी क्या- क्या नहीं करता है, तो ई तो भला मछरी हैं .बिना चारा के लालच में फंसेगी नहीं .दोपहर तक चार पांच गिरई, टेगना ,सिधरी मार ही लाते थे .दू ठो खवइया, कितना खायेंगे .मरद मेहरारू बस .औलाद नहीं है .भगवान की मर्जी .अभी उमिर है .लेकिन देखा जाएगा, जो भाग्य में बदा है, वह तो होकर रहेगा. पटवारी की नौकरी पानी बुन्नी में किसको गरज पडी है कि खेत की पैमाइस कराने आयेगा .रजिस्टरी भी तो नहीं होगी .लाला की जात मांस मछरी के शौक़ीन .ताल में पहरा लगा कर लड़का बच्चा सिधरी मारने में जुट जाते थे .स्कूल की छुट्टी .ऊ का बोलते हैं रेनी डे हो जता था . इट इज द रेनी झमाझम ,लेग माई फिसला गिर गए हम .यह लड़कों के अंगरेजी का ज्ञान चौतरफा सुनाई देता था.
पहली बरसात में तरकारी का बीज अंखुआ फेंक कर बाहर आ जाता था .ज्यादा बड़ा हुआ, तो रस्सी से बाँध कर ऊपर की ओर चढ़ने के लिए रास्ता बना दिया जाता था .नेनुआ ,सर्पुतिया लौकी ,कोहड़ा सब बाढ़ पर होते थे .तबीयत खुश तरकारी भरपूर मिलेगी .ज्यादा हुआ तो दो चार घर बंट भी जाता था .तब बाज़ार नहीं ,भाई – चारा था .
जोन्हरी के खेत में मचान बंध जाता था बल्ली में एक कनस्तर ज़रूरी था .लिया लकड़ी और लगे बजाने .जनावर आदमी सब भाग जायं. रात भर जागरण होता था, जैसे अभी रात को नीलगाय भगाते हैं .दो भुट्टा खा कर खांड का रस पी कर तबीयत मस्त हो जाती थी .मन्नू का बेटा जोन्हरी की बाली के साथ साथ ककरी भी चुरा लेता था .घरे आकर खांड से खाकर ज़मीन पर लोट जाता था .कोई बोलता भी नहीं था एक ठो भुट्टा ही तो चुराता था कौनो सोना कहानी नहीं चुराता था .औकात के हिसाब से चोरी चकारी भी की जाती है .ई बात जगजाहिर है ..यही जोनहरिया पापकार्न बन कर डेढ़ सौ रुपया पौआ बिक रही है . समय- समय की बात है ,नहीं तो यही जोंह्ररिया घरे- घरे लटकती मिलती थी गुच्छा की गुच्छा .लावा भूंज कर खाते थे .ढूंढा भी मस्त लगता था . सड़क आयी ,तो सावां- साठी सब परा गये . जायद की फसल आज के मसटरवा भी नहीं बता पायेंगे .देखे हो तब न !जोन्हरी की बाली को पापकार्न विद स्टिक कहेंगे .उफ्फर पड़े ऐसी पढाई .
पढाई तब होती थी .यही गणेश मुंशी जी थे .अरे वही दरवरपुर वाले, गदहिया गोल से लेकर तीन तक पढ़ाते थे .मार डंडा -मार डंडा ककहरा से लेकर कुल पहाड़ा याद करा देते थे- देवढा ,अढइया,पौना सवैया सब .पन्द्रह के पहाड़े में अट्ठे बीसा नौ पैत्न्तीसा के बाद धूम धड़ाका डेढ़ सौ ही आता था पन्द्रह दहा कहने की ज़रुरत ही नहीं पड़ती थी .ध्रुवजटी मास्टर साहब ने ऐसी अंगरेजी पढाई कि पीठ पर प्रजेंट टेन्स अभी भी है, पास्ट टेन्स कभी हुआ ही नहीं .
अब देखो यही होता है ,सावधानी हटी कि दुर्घटना हुई .बात सावन की चल रही थी कि बीच में जेठ की तरह पढ़ाई आ गयी .कोई बात नहीं जीव है बहक ही जाता है .सावन हो और जीव न मचले ई बात हो ही नहीं सकती .सरजू पटवारी भरी पोखरी लट्ठा से नापने की चुनौती दे डालते थे और ज़मीन नापते समय सुन्दर काण्ड का जाप करते थे .लट्ठा कभी हाथ में लेते नहीं थे .ज़मीन देख कर बता देते थे कि कितना बिस्सा होगा .उनकी याद इसलिए आ गयी कि वह दंगल कराने के लिए चन्दा भरपूर देते थे .कजरी उनको बहुत पसंद थी .यही बगल के गाँव के थे .पचइयाँ के दिन पहलवानों को चोटहिया जलेबी खिलाते थे. कमाते बेईमानी से थे, खर्च ईमानदारी से करते थे .सावन आते ही उनके चेहरे पर बदरी छा जाती थी .न खेत बिकायेगा ,न रजिस्ट्री होगी ,रजिस्ट्री होगी ,तो खेत नपायेगा ,फिर जाकर खलित्ता में कुछ रकम आयेगी . सब्र बड़ी चीज है .यह सीखना हो तो सरजू पटवारी से सीखो .
सावन आते ही भौजी की हथेली खजुआने लगती है – मेहंदी लगवाने के लिए .चुड़िहारिन आ जाती थी – कामदानी हरी- हरी चूड़ी पहना जाती थी .मोतीझील की मेहंदी और मिर्जापुर की कजरी का तोड़ नहीं .भौजी गाती थीं– पीया मेहंदी लिया दा मोती झील से .इतना तो ठीक था .किसी से मंगवा देते भैया या किसी दिन बनारस गए तो लेते आते .लेकिन भौजी की जिद .नहीं साइकिल से जाना होगा। पूरा अन्याय है यह! तो अरे भाई तिवारी के खेत के मेड़ पर मेहंदी -ही -मेंहदी है जाओ तोड़ लो .हिटलर चाची तो यही करती थीं. सवेरे गयीं मैदान भी हो आयी और लौटते समय मेहंदी की डंडी तोड़ लाई .पत्ती तोड़ने में कौन समय बर्बाद करे .खाली मेहंदी ही काम नहीं .और भी घर का काम है .फुर्सत से पत्ती तोड़ना ,पीसना ,लगवाना .फिर दोनों हाथ फैला कर चारपाई पर पसर जाओ ..रात भर में मेहंदी खिल कर हाथ पर उभर आयेगी .हिटलर चाची, चाचा का नाम लिखवाती थीं –काशी .अपने आदमी का नाम लिखवाने में काहे की शरम ?
दोपहर में थोड़ी फुर्सत रहती थी , सबके दुआरे नीम का पेड़ होता था ,रस्सा भी मिल ही जाता था .साल भर का त्यौहार है क्यों कोई मना करे .छाया ,उर्मिला ,सीता, सविता, दुर्गावती सारी सखी इकट्ठा हो जाती थी, तो भौजी को खूब परेशान करती थी .दुर्गावती और सीता पटेंग मारने में बहुत तेज थी .डर तो उनके हिस्से में आया ही नहीं था .दोनों में शर्त लग जाती थी कि नीम की डाल तक किसकी ओर पटरा पहुंचता है .दुर्गावती जीत जाती थी .बैठने वाला भले डर जाय, लेकिन ई दोनों लडकियां ज़रा भी नहीं डरती थीं .
नाग देवता को लाई दूध खिला पिला दिया काम खत्म .पहले श्रद्धा थी .हे नाग देवता जब फन पर काशी उठा लिये हो, तो हम लोग का हैं आप की शरण में हमेशा रहते हैं .नाग देवता को लेकर पहले सपेरे आते थे. जो उस समय जुरता था बाबा के नाम पर सपेरे को दान दे देते थे .धन्य कर देता था नाग बाबा का दर्शन करा के .अब तो आते नहीं .ऐसा समय आ गया है कि बाबा के नाम पर रोजी रोटी नहीं चलती .सावन में मारकंडे महादेव का दर्शन हो गया ,काशी विश्वनाथ का दर्शन मौक़ा मिलने पर .
भाँदो आया .सरले सावन ,भरले भादो .कोई एक दूसरे से कम नहीं हथिया का झाँटा देखने लायक होता था .फसल लहालोट हो जाती थी . हवा इतनी तेज कि गमछा कंधे से फेका जाय .जायद की फसल घर आने के लिए रेडी .चलो चलते हैं .ज़रा रुको पकने तो दो .जौ तो है नहीं कि हापूस बना कर खाओगे .ज्यादा मन हो तो मलकिन से पकौड़ी बनवाओ और चाय के साथ मज़ा लो, नहीं तो गोइंठा में चना डालो भुन जाय तो नमक मिर्चा से खाओ ,ऊपर से खांड का रस पी लो ,लम्बी डकार न निकले तो कहो .मज़ा न आवै तो गोहरा की भरपाई हम कर देंगे.
तीज आ गया ।भौजी के हाथ की मेंहदी अभी चौचक जमी है .भैया से नई साड़ी मंगवा कर पहनेंगी ,यही तीज त्यौहार में तो भौजी का मुंह खुलता है . साड़ी साया तो चाहिए ही ,पुरानी साड़ी पहन कर सुहाग का व्रत नहीं रखेंगी भौजी .सुहाग बना रहे , भैया सुखी रहे उनके हिस्से का दुःख भौजी के हिस्से .चुड़िहारिन आयेगी तो भर हाथ चूड़ी पहनेंगी. भैया भी दयालु हैं भौजी को बहुत मानते हैं .बनारस से साड़ी ले आये ,आलता ,बिंदी ,टिकुली सब कुछ .चौबीस घंटे का व्रत है ,सुत्फेनी खा कर व्रत की शरुआत होगी .व्रत तोड़ने के बाद भैया जलेबी दही ले आते हैं .हर साल का नियम है .
भौजी सिंगार करके झूला ज़रूर झूलेंगी .तीज त्यौहार खुश हो कर मनाना चाहिए .बरक्कत होती है घर में .भोले नाथ का मंदिर घर के सामने ही है. बाबू जी पूजा पाठ वाले आदमी थे .घर के सामने मंदिर बनवा दिया .शाम सवेरे पूजा पाठ होता रहता है ,घर में दिया जलाने के बाद मंदिर में भी रोज दिया जलाती हैं भौजी . भगवान् का ही दिया तो है सब . .
अब समय बदल गया .किसी के दुआरे नीम का पेड़ नहीं .दतुअन की जगह टूथ पेस्ट और ब्रश आ गया .घर ईंट का बन गया .सडक बन गयी .दारू की दूकान खुल गयी .शंकर की बूटी गयी भाड़ में ।भांग नहीं ,दारू छानो , पी के मस्त चाहे जिसको गाली दो .लतियाए जाओगे बस यही न ! सौ- सौ जूते खाय तमाशा घुस के देखो वाली बात है .घर- घर मोटर साइकिल हो गयी .अन्न की महंगाई की चिंता नहीं, पेट्रोल भी मंहगा हो गया, .मोटर साइकिल में तेल भरवाया .सडक पर दौडाया .शाम का इंतजाम ? बाबू का पैसा तो है ही .पेशन का पैसा क्या करेंगे ?मोटर साइकिल ससुराल से मिली है .बाप न मारे मेढकी ,बेटा तीरंदाज वाली बात है
पोखरा बऊली गडही कुल सूख गया .पाट -पाट के घर दुआर बन गया .परिवार बढेगा तो घर भी तो चाहिए. तीज त्यौहार बीत गया ..पितरपख के बाद रामलीला और दियादिवारी की बात सोची जायेगी .दंगल बिरहा बाद में .सावन बीत गया , भादों कापर पर बइठ गया .अभी बहिनी को तीज भेजनी है .उसका इंतजाम करना है .आजी उठी और हुक्की खोजने लगीं . ई दोनों महीना की महता अपने -अपने में है – न सावन हल्लुक ,न भादों दुब्बर.
Sawan : न सावन हल्लुक, न भादों दुब्बर
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