SCO Summit : भारत और दुनिया के लिए क्या हैं मायने, आज से शुरू होगा SCO सम्मेलन

Siddarth Saurabh
{"remix_data":[],"remix_entry_point":"challenges","source_tags":["local"],"origin":"unknown","total_draw_time":0,"total_draw_actions":0,"layers_used":0,"brushes_used":0,"photos_added":0,"total_editor_actions":{},"tools_used":{},"is_sticker":false,"edited_since_last_sticker_save":false,"containsFTESticker":false}

मोदी-जिनपिंग की मुलाकात पर टिकी दुनिया की नजरें, दुनिया की नजर तियानजिन पर

SCO Summit : शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का 25वां सम्मेलन चीन के तियानजिन में होने जा रहा है. लेकिन ये सम्मेलन सिर्फ इसलिए महत्वपूर्ण नहीं कि ये 25वीं बैठक है, बल्कि इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यही सम्मेलन अमेरिका के एकाधिकार और दबाव के खिलाफ एक रणनीतिक रास्ता निकाल सकता है, जो ट्रंप के टैरिफ बम को बेअसर कर देगा. इस बैठक में यह तय है कि भारत-चीन-रूस मिलकर ट्रंप की एकाधिकार वाली नीति के खिलाफ बड़ा कदम उठाएंगे.

चीन के तियानजिन में आज से SCO समिट शुरू होगी, जिसमें भारत, रूस, चीन समेत दुनिया भर के 20 से ज्यादा देश शामिल होंगे. इस बैठक में प्रधानमंत्री मोदी, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के प्रधानमंत्री शी जिनपिंग अहम भूमिका अदा करेंगे. माना जा रहा है कि ये समिट अमेरिका के एकाधिकार और दबाव के खिलाफ एक रणनीतिक रास्ता निकाल सकता है और तीनों देश मिलकर ट्रंप के प्लान पर पानी फेर सकते हैं.

एससीओ क्या है और क्यों महत्वपूर्ण है?

1990 के दशक में गठित और 2001 में औपचारिक रूप से स्थापित शंघाई सहयोग संगठन की शुरुआत आतंकवाद से लड़ाई और आर्थिक सहयोग को गहराने के लिए हुई थी. अब इसके 10 स्थायी सदस्य हैं – रूस, चीन, भारत, पाकिस्तान, ईरान, बेलारूस, कजाख़स्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान.

इस साल का सम्मेलन 31 अगस्त से 1 सितंबर तक चीन के उत्तरी बंदरगाह-शहर तियानजिन में हो रहा है. चीन इस समय संगठन की अध्यक्षता कर रहा है. उसका कहना है यह एससीओ अब तक का सबसे बड़ा सम्मेलन होगा, जिसमें 20 देशों और 10 अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधि शामिल होंगे.

इस बार इस सम्मेलन के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी तियानजिन पहुंचे हैं. 2018 के बाद उनका यह पहला चीन दौरा है. भारत और चीन के रिश्ते 2020 की सीमा झड़प के बाद ठंडे रहे, लेकिन पिछले साल अक्टूबर में रूस में मोदी और शी जिनपिंग की मुलाकात के बाद से कुछ सुधार दिखा है।

पुतिन और शी की नजदीकी के बीच भारत की मौजूदगी विशेष महत्व रखती है. भारत और चीन एशिया की दो सबसे बड़ी जनसंख्या वाले देश हैं और लंबे समय से प्रतिस्पर्धी भी. लेकिन भारत एससीओ का हिस्सा है और इस मंच पर उसे रूस और चीन दोनों से बातचीत का अवसर मिलता है.

मोदी का यह दौरा जापान यात्रा के तुरंत बाद हो रहा है, जहां जापान ने भारत में 68 अरब डॉलर निवेश की घोषणा की. इस तरह भारत एक ओर जापान जैसे अमेरिका के सहयोगियों के साथ रिश्ते मजबूत कर रहा है, तो दूसरी ओर चीन और रूस जैसे प्रतिद्वंद्वियों से संवाद भी बनाए रख रहा है. यह भारत की संतुलन साधने की रणनीति है.

अमेरिका के लिए चुनौती बनेगा ये मंच

डॉलर से व्यापार और SWIFT तंत्र की बदौलत अमेरिका पूरी दुनिया पर दबाव बनाता है. वह अन्य देशों पर मनचाहे टैरिफ और प्रतिबंध लगाता है, हालांकि अब तक की स्थिति में अमेरिका के खिलाफ कोई ऐसा गठबंधन खड़ा नहीं हुआ, जो उसके आर्थिक विस्तार को चुनौती दे सके. लेकिन दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों पर आए दबाव के बाद SCO वह मंच बन सकता है, जो अमेरिका के लिए चुनौती बन जाएगा. ऐसा इसलिए होगा क्योंकि SCO दुनिया को चलाने वाले तंत्र का एक शक्ति केंद्र बनता हुआ नजर आ रहा है. आबादी, संसाधन और भूगोल ही नहीं आर्थिक समृद्धि भी SCO को अमेरिका से आगे खड़ा करते हैं.

ट्रंप के प्लान पर पानी फेर सकते हैं तीनों देश

SCO के सम्मेलन का मुख्य मुद्दा भले ही आतंकवाद, चरमपंथ और अलगाववाद के खिलाफ एकजुट होकर लड़ना है, लेकिन इस बैठक में जिस विषय पर फैसला होगा, उसमें ट्रंप की दबाव बनाने वाली नीति भी शामिल है. यह तय है कि भारत-चीन-रूस मिलकर ट्रंप की एकाधिकार वाली नीति के खिलाफ बड़ा कदम उठाएंगे. इस बैठक से इतना तय है कि ये तीनों देश मिलकर ट्रंप के प्लान पर पानी फेर सकते हैं.

सर्कुलर ट्रेड बना सकते हैं ये देश

ऐसा इसलिए माना जा रहा है क्योंकि रूस के पास तेल, गैस और मिनरल्स हैं. चीन के पास मैन्युफैक्चरिंग तकनीक और ढांचा है, वहीं भारत के पास बड़ा कंज्यूमर मार्केट और सर्विस सेक्टर है. ये तीनों देश मिलकर सर्कुलर ट्रेड बना सकते हैं, जिसमें रूस की भूमिका ऊर्जा और धातु देने में होगी, चीन की भूमिका तकनीक और मैन्युफैक्चरिंग में होगी और भारत उपभोक्ता बाजार और IT सर्विसेज दे सकता है, जिसका सीधा मतलब है कि रूस-चीन-भारत साथ मिलकर अमेरिकी टैरिफ का दबाव खत्म कर देंगे और बहुत ही कम लागत वाली वैकल्पिक अर्थव्यवस्था तैयार भी कर सकते हैं.

डिजिटल पेमेंट सिस्टम बना सकते हैं तीनों देश

भारत-रूस-चीन डिजिटल करेंसी और पेमेंट सिस्टम बना सकते हैं. जैसे SWIFT के विकल्प में चीन ने CIPS यानी क्रॉस बॉर्डर इंटरबैंक पेमेंट सिस्टम बनाया है. ठीक ऐसे ही रूस ने भी SWIFT के जवाब में SPFS जैसा फाइनैंशियल ट्रांजैक्शन सिस्टम तैयार किया है. वहीं भारत भी UPI ग्लोबल मॉडल जल्द लॉन्च करने जा रहा है, जिन्हें आपस में जोड़ा जा सकता है. इसके बाद से इंटरनेशनल ट्रांजैक्शन के लिए SCO के सदस्यों को अमेरिकी करेंसी की जरूरत ही नहीं पड़ेगी.

चीन में हो रहे SCO सम्मेलन में क्या होने वाला है रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के इन बातों से आसानी से समझा जा सकता है. आपको बता दें कि चीन का अपना दौरा शुरू होने से पहले पुतिन ने चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ को एक लंबा इंटरव्यू दिया. इसमें उन्होंने कहा कि यह दौरा केवल कूटनीतिक औपचारिकता नहीं बल्कि उस विचारधारा को दोबारा जिंदा करने की कोशिश है जिसे पुतिन बार-बार दोहराते हैं, “बहुपक्षीय वर्ल्ड ऑर्डर”, यानी ऐसा वैश्विक ढांचा जिसमें केवल अमेरिका या पश्चिमी देश नहीं बल्कि कई ताकतें मिलकर अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था तय करें.

पुतिन ने कहा कि शंघाई सहयोग संगठन सम्मेलन से “नए वर्ल्ड ऑर्डर की दिशा में बहुत मजबूत गति” मिलेगी. उन्होंने अमेरिका या यूक्रेन युद्ध का नाम नहीं लिया, लेकिन यह स्पष्ट है कि उनका मकसद अमेरिकी प्रभुत्व को चुनौती देना है.

पुतिन ने यह भी बताया कि रूस और चीन ने लगभग पूरी तरह से अपने व्यापार को राष्ट्रीय मुद्राओं यानी रूबल और युआन में स्थानांतरित कर दिया है. डॉलर पर निर्भरता घटाने की यह प्रक्रिया उनके अनुसार मौजूदा वैश्विक संतुलन को बदलने की शुरुआत है.

Share This Article
Leave a Comment