State Election…तो फिर शुरू होगी ‘जोड़तोड़’ की राजनीति!

Nishikant Thakur

State Election : देश के लिए पिछले सप्ताह बेहद रोमांचक रहा। पहला तो यह कि महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव और दूसरा अडानी समूह के चेयरमैन गौतम अडानी और उनके भाई के बेटे द्वारा भारतीय अधिकारियों को घूस देने का मामला , उनकी गिरफ्तारी के लिए  अमेरिका का वारंट जारी करना। यहां तक कि इस मुद्दे पर संसद में चर्चा के लिए विपक्ष ने हंगामा शुरू कर दिया है। विपक्षी हंगामे के बाद लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति ने सदन की कार्यवाही को रोक दिया और विपक्ष की इस मांग को खारिज कर दिया कि गौतम अडानी मामले पर सुनवाई संसद में नहीं होगी। चूंकि अभी मुद्दा पूरी तरह साफ नहीं हुआ है, इसलिए इस मामले में केवल समाचारों पर आश्रित रहा जा सकता है और जब तक मामला पूरी तरह स्पष्ट न हो जाए, बिना साक्ष्य के कुछ भी लिखना उचित नहीं होगा। इसलिए इस मुद्दे पर फिर कभी बात करेंगे। फिलहाल महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनावों पर चर्चा करते हैं। यह जानते हुए किसी भी रास्ते से पहाड़ के ऊपर पहुंच जाते हैं , चोटी पर , फिर भी तो आपको एक रास्ते पर ही चलना होगा , आप दो रास्ते  पर नहीं चल सकते । यदि देश के एक बड़े उद्योगपति के साथ कुछ लोचा हुआ है या उसने कोई बेवकूफी की हैं तो इस पर सत्तारूढ़ को स्पष्ट करना ही चाहिए । क्योंकि;  वह कृत्य देश को विश्व में बदनामी देता है, लेकिन यह क्या सत्तारूढ़ का दावा कि एक उद्योगपति द्वारा किया गया वह तथाकथित अपराध  बेबुनियाद और राष्ट्र के प्रति अपमान है , साजिश है और  अमेरिकी अदालत का आदेश ही गलत है। सच तो यह है कि चलते समय तो एक ही रास्ता चुनना होगा ।

वैसे, झारखंड में इंडिया गठबंधन को जनता ने अपना मत देकर विजय बनाया है, तो महाराष्ट्र में जबरदस्त मत देकर भाजपा को सरकार बनाने का अवसर दिया है। ऐसा ही, पिछले दिनों हरियाणा और जम्मू-कश्मीर  यही हाल हुआ था जब भाजपा ने हरियाणा में अपना परचम लहराया था, वहीं जम्मू—कश्मीर में इंडिया गठबंधन की सरकार बनी। यानी, अब तक जिन विधानसभाओं के चुनाव हुए, उसमें केंद्रीय सत्तारूढ़ और इंडिया गठबंधन को पचास—पचास प्रतिशत भागीदारी देकर अवाम ने यह दिखा दिया कि उनके हिसाब से जो कोई भी देश की सेवा करेगा, उसे सरकार चलाने का अवसर दिया जाएगा। कहा जा सकता है कि समाज ने एक तरह से अब यह तय कर लिया है कि सत्तारूढ़ का ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का नारा महज जनता को अपमानित करने का नारा था, जिसे उसने पूरी तरह से अस्वीकार कर दिया है।

चुनाव बीत जाने के बावजूद अभी भी नेताओं द्वारा हंगामा बरपाया जा रहा है कि चुनाव में गड़बड़ी हुई है, लेकिन इसे आज तक न तो चुनाव आयोग ने स्वीकारा है और न कभी सत्तारूढ़ द्वारा स्वीकार किया जा सकता है; क्योंकि सभी जानते हैं कि हारने वाला ही आरोप लगाता है और हंगामा  बरपाता है। जो भी हो, जनता ने तो अपना फैसला सुना दिया, आगे आपकी मर्जी। आप कोर्ट-कचहरी में लड़ते रहिए। ऐसा इसलिए, क्योंकि भारतीय न्यायिक व्यवस्था पर अब हर कोई उंगली उठाने लगा है कि याचक को समय पर न्याय नहीं मिलता है। ऐसा न्यायिक पतन देश में क्यों होता जा रहा है, यह समझ से परे है। सब अपनी—अपनी तरह से व्याख्या करते हैं, लेकिन इतना तो सच है कि न्याय के लिए याचक दर—दर भटकता अक्सर मिल जाता है।

महाराष्ट्र और झारखंड के लिए विश्लेषकों ने पहले भी यह मान लिया था कि दोनों राज्यों में फिर से वही पार्टी सरकार बनाएगी, जो पहले से सत्तारूढ़ है। रही बात महाराष्ट्र की, तो इतनी जबरदस्त सफलता की उम्मीद भाजपा भी नहीं कर रही थी। अब यह तो निश्चित है कि महाराष्ट्र में भाजपा अपने दम पर ही सरकार बनाएगी, लेकिन इतना तो तय है कि महाराष्ट्र विधानसभा कुछ दिनों में ही विपक्षहीन हो जाएगा। ऐसा इसलिए, क्योंकि जितनी कम मात्रा में विपक्ष के विधायक चुनकर विधानसभा पहुंचे हैं, कुछ दिनों में ही अकुलाहट में सत्ताविहीन होने का दुःख झेल नहीं पाएंगे और यह भी हो सकता है कि कमल की खुशबू से विचलित होकर वे सभी उसी में विलीन हो जाएं। ऐसा ही तो पिछली बार भी हुआ था, जब वहां के लगभग सभी विधायक एकनाथ शिंदे के साथ मिलकर सरकार को गिराकर सत्तारूढ़ पार्टी में शामिल हो गए थे। कहा जाता है कि सरकार गिराने के पुरस्कार के तौर पर ही एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बनाए गए और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को उपमुख्यमंत्री के पद से ही संतोष करना पड़ा। इस बार के विधानसभा चुनाव तो देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में ही लड़ा गया, जिसमें भाजपा को अपार सफलता मिली है। भाजपा ने राज्य में 149 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, जिसमें उसने 132 सीटों पर जीत हासिल की है। कहा जा रहा है कि भाजपा के इस चुनाव में जीत का सारा श्रेय देवेंद्र फडणवीस को ही दिया जाना चाहिए। इसलिए सबकी नजर देवेंद्र फडणवीस पर ही अटकी हुई है।

अब झारखंड चुनाव की बात करें, तो फिर वहां चुनाव हेमंत सोरेन के नेतृत्व में लड़ा गया और उसमें इंडिया गठबंधन को अपार सफलता मिली। पिछले दिनों इंडिया गठबंधन की बैठक में हेमंत सोरेन को ही अपना नेता चुना गया और उनका मुख्यमंत्री बनना भी उसी समय तय हो गया। हेमंत सोरेन को जिस अपराध में जेल भेजा गया था, उससे तो यही लगने लगा था कि इंडिया गठबंधन की सरकार नहीं बन पाएगी और वहां पार्टियों के बीच फूट डालने का भरपूर प्रयास भी किया गया, लेकिन सब गलत साबित हुआ। वहां हेमंत सोरेन ही फिर मुख्यमंत्री बन गए। जिस प्रकार सत्तारूढ़ दल ने देश को राजनीतिक रूप से कमजोर और अस्थिर कर दिया है, उसकी भरपाई कभी हो पाएगी, इसमें संदेह है। ऐसा इसलिए, क्योंकि देश में किसी राज्य की सरकार ऐसी नहीं है, जिसके विपक्षी को कमल की खुशबू के लिए उकसाया न गया हो और हॉर्स ट्रेडिंग करके चलती सरकार को गिराने का प्रयास न किया गया हो। इसके कई उदाहरण हैं, लेकिन उसका एक—एक विवरण दे पाना संभव नहीं हो सकता। इसलिए ऐसा कतई नहीं कहा जा सकता कि झारखंड की नवगठित सरकार आगामी पांच वर्षों तक चल पाएगी या रास्ते में ही दम तोड़ देगी?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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