SVRA : भारत वैश्विक व्यापार के मौजूदा टैरिफ युद्धों के बीच अपनी अर्थव्यवस्था को सुरक्षित और सुदृढ़ बनाने के लिए कई नई रणनीतियाँ अपना रहा है। हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने 22 देशों के बैंकों को “विशेष वास्ट्रो रुपया खाते (SVRA- Special Vastro RuPay Account)” खोलने और आपसी भुगतान निपटान के लिए भारतीय रुपये में कारोबार करने की अनुमति दी है।
यह कदम भारत की मुद्रा को अंतरराष्ट्रीय मंच पर अधिक स्थान दिलाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण पहल है, जिससे भारत को डॉलर पर निर्भरता में कमी लाने, मुद्रा के अवमूल्यन से बचाव और विदेशी मुद्रा भंडार के संरक्षण में मदद मिलेगी।
इन 22 देशों में बांग्लादेश, बेलारूस, बोत्सवाना, फिजी, जर्मनी, गुयाना, इज़राइल, कज़ाकिस्तान, केन्या, मलेशिया, मालदीव, मॉरीशस, म्यांमार, न्यूज़ीलैंड, ओमान, रूस, सेशेल्स, सिंगापुर, श्रीलंका, तंजानिया, युगांडा और यूनाइटेड किंगडम शामिल हैं। फ़िलहाल रूस, श्रीलंका और मॉरीशस ने इन खातों के जरिए वास्तविक कारोबार शुरू किया है जबकि अन्य देश भी इसी दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
भारतीय रुपये में अंतरराष्ट्रीय व्यापार करने से सीधे-सीधे डॉलर पर दबाव कम होता है। जब भी भारत किसी देश के साथ निर्यात-आयात में रुपये का इस्तेमाल करता है, तो डॉलर में लेन-देन की आवश्यकता घट जाती है। इससे न केवल ट्रांजेक्शन लागत घटती है, बल्कि विनिमय दर के उतार-चढ़ाव का खतरा भी कम होता है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि मुद्रा भंडार पर अचानक आने वाले दबाव से राहत मिलती है और रुपये की स्थिरता बनी रहती है।
हालांकि, फिलहाल इस व्यवस्था का उपयोग बहुत सीमित स्तर पर हुआ है और इसका वैश्विक प्रभाव अभी कम है, लेकिन यह एक महत्वपूर्ण शुरुआत है, जो आने वाले वर्षों में और ज्यादा विस्तार पा सकती है।
यह रणनीति ऐसे वक्त में लाई गई है जब अमेरिका द्वारा भारत के कुछ प्रमुख निर्यात उत्पादों पर भारी टैरिफ (50% तक) लगा दिया गया है। इससे भारत के कुल वार्षिक निर्यात का बड़ा हिस्सा प्रभावित हो सकता है, और अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धा में भारतीय वस्तुएं पिछड़ सकती हैं।
ऐसे में भारत सरकार ने निर्यातकों की सहायता के लिए 20,000 करोड़ रुपये का विशेष निर्यात प्रोत्साहन पैकेज भी लागू किया है। यह पैकेज व्यापारिक ऋण उपलब्ध कराने, नीतिगत सहुलियतें देने, विदेशी बाजारों तक पहुंच आसान करने, ब्रांड इंडिया को मजबूत करने और ई-कॉमर्स नेटवर्क बढ़ाने जैसे क्षेत्रों पर केंद्रित है। इसका उद्देश्य है कि भारतीय निर्यातक वैश्विक अनिश्चितताओं के बावजूद अपने कारोबार को आगे बढ़ा सकें।
रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण की यह पहल अन्य कई लाभ भी लेकर आती है। इससे भारतीय कंपनियों को विदेशी मुद्रा भंडार की आवश्यकता कम होगी और कारोबार में लगने वाला समय और रिसोर्स बचेगा।
वहीं रूस जैसे देशों के साथ आपसी व्यापार में रुपया इस्तेमाल करने पर कभी-कभी रूसी बैंकों में मोटा रुपया जमा हो जाता है, जिसे आगे निवेश या भारत से वस्तुएं खरीदने के रास्ते से हल किया जा रहा है।
आर्थिक मोर्चे पर भारत ने साफ बोला है कि “de-dollarization” यानी डॉलर को पूरी तरह किनारे करना उसका उद्देश्य नहीं है; बल्कि, भारत की योजना स्थानीय एवं द्विपक्षीय भुगतान तंत्रों को बढ़ावा देकर अधिक विकल्प बनाना एवं ग्लोबल बाजारों में अपनी करेंसी की भूमिका बढ़ाना है।
इसी कड़ी में, भारत अपनी डिजिटल पेमेंट प्रणाली (जैसे UPI) और उत्पादन प्रोत्साहन स्कीम (PLI) के जरिए भी निर्यात को बढ़ा रहा है, जिसका असर इलेक्ट्रॉनिक्स एक्सपोर्ट समेत कई क्षेत्र पर दिख रहा है।
भविष्य की ओर देखें तो भारत का लक्ष्य अगले कुछ वर्षों में निर्यात को 2 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचाना और अमेरिकी व्यापार में 500 बिलियन डॉलर के आंकड़े को छूना है। इसके लिए दीर्घकालिक रणनीति अपनाई जा रही है, जिसमें व्यापारिक बाज़ारों का विविधीकरण और वैश्विक-दक्षिण (Global South) सहयोग पर भी ध्यान है।
अंततः, भारत ने साहस के साथ एक नई राह शुरू की है―रुपये को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ावा देने, डॉलर निर्भरता सीमित करने और वैश्विक व्यापार में आर्थिक स्वायत्तता की ओर बढ़ने की।
