निशिकांत ठाकुर
नई दिल्ली : आदिकाल से ही हमारे समाज में सभ्य लोगों के साथ चोर, डकैत, लुटेरे जैसे असामाजिक तत्व भी होते रहे हैं। आज के आधुनिक युग में सब बदल गया, चोरी सामान्य बात हो गई है। डकैती भी जारी है, लेकिन इसका स्वरूप बदल गया है। डाका डालने वालों की शक्ल में अब आतंकी पैदा हो गए हैं, जिनका उद्देश्य लूटपाट ही नहीं, जनधन की हानि भी होता है। विश्व के कुछ ऐसे मजबूत देश हैं, जहां इन आतंकियों का बहुत ही कड़े तरीके से विरोध किया जाता है, लेकिन कुछ देश उन्हीं आतंकवाद को रोकने में टूटते चले जाते हैं। अब इसका अगला नाम ‘युद्ध’ हो गया है, जिससे विश्व पहले भी परेशान था और आज भी परेशान है। हालांकि, ऐसे देशों के राजनीतिज्ञ शांतिपूर्ण ढंग से अपने नागरिकों की रक्षा करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं।लेकिन, कुछ देशों का उद्देश्य ही आतंकवाद को बढ़ावा देकर धन अर्जित करना हो गया है, तो कुछ उन गतिविधियों से अपनी जनता को बचाए रखने के लिए तरह—तरह के उपाय अपनाते हैं। आतंकियों द्वारा बड़े हमलों में एक अमेरिका में हुए ओसामा बिन लादेन द्वारा कराया गया हमला और दूसरा अपने भारत में ही मुंबई पर पाकिस्तानी आतंकियों का हमला है। वैसे उनके द्वारा किए और कराए गए असंख्य हमले हैं, लेकिन यह दोनों हमलों ने पूरे विश्व को दहला दिया था।
एक बड़ा प्रश्न विश्व के कई देश जो आतंकी हमलों से ऊब चुके हैं, उन्होंने भी इसका पता लगाने का असफल प्रयास किया कि आखिर क्यों बनता है कोई आतंकी? क्या उनके मस्तिष्क को मनोवैज्ञानिक रूप से इस प्रकार मथ दिया जाता है, उन्हें उस शून्य में ले जाया जाता है, जहां सुख-सुविधाओं का अंबार सजा हो, जिसे पाने के लिए वह अपना सर्वस्व त्यागने के लिए तैयार रहते हैं। पता नहीं ऐसी कौन सी सीख दी जाती है कि युवा विचलित होने के बजाय अपने को न्योछावर कर देते हैं। दुनिया के आतंकी घटनाओं की बात तो फिर कर लेंगे, लेकिन अपने भारत में ही आतंकी घटनाओं के उन नरसंहार को जानने का प्रयास करते हैं, जिसमें सेना और पुलिसबल और सामान्य नागरिक मौत के घाट उतार दिए गए। मई 2014 से नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं। उनके अब तक के छह साल, यानी 2014 से लेकर 2019 तक आतंक की 2,302 घटनाएं हुईं, जिसमें 995 आतंकी मारे गए। इसके साथ ही हमारे भी 419 जवान शहीद हो गए, जबकि 177 आम नागरिकों की जान गई। 2019 से 2020 तक में 56, 2021 में 45, 2022 में 30, 2023 में 33 सैनिक शहीद हुए। इस साल अब तक आतंकियों से निपटने के अलग—अलग अभियान चलाए गए, तो आतंकियों द्वारा भी घात लगाकर कई हमले किए गए हैं। इस वर्ष के लिए गृह मंत्रालय के आंकड़ों को मानें, तो जुलाई में दस सैनिक शहीद हुए हैं। इस साल अब तक किश्तवाड़ के हमलों को जोड़ लें, तो अब तक पचास आतंकी भी मारे गए हैं।
विश्व के कई देशों ने आतंकवाद की सफाई के निर्णय बार—बार लिए हैं, लेकिन आतंकवाद का सफाया नहीं हो पा रहा है। आतंकी को तैयार करने में किसी भी देश को वर्षों लग जाते हैं। इनकी ट्रेनिंग बालकाल से शुरू हो जाती है। इन बच्चों को शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार किया जाता है जो अपनी ट्रेनिंग के दौरान इतने ट्रेंड हो जाते हैं कि बड़े से बड़े योद्धाओं को धूल चटा देते हैं। वर्षों की ट्रेनिंग के बाद जब ऐसे बच्चे आतंकी के रूप में तैयार हो जाते है, तब उन्हें बड़ा पदनाम देकर उनका मनोबल बढ़ाया जाता है और फिर किसी घटना को अंजाम देने के लिए उन्हें मोर्चे पर भेज दिया जाता है। उनके ट्रेनर उनको विशेष ट्रेनिंग देते हैं, ताकि यदि तुम मारे जाते हो, तो जन्नत (स्वर्ग) मिलेगा, जहां खुशियों के अलावा कुछ नहीं होता और यहां तुम्हारे परिवार की देखरेख उनके द्वारा ही की जाएगी। इस तरह के लोभ और आश्वासनों के बाद बाल हृदय को पिघला दिया जाता है और वे ऐसी बातों को सत्य मानकर किसी भी घटना को अंजाम देने के लिए तैयार हो जाते हैं। भारतीय खुफिया एजेंसी ने इसे देखा है और सत्य को प्रकट किया है। अभी जब कश्मीर में फौजी दस्ते पर अपनी गाड़ी से टक्कर मारकर हमारे बेकसूर जवानों को उड़ा दिया, तो यह दिल को दहलाने वाली बात है, जिसे कभी भी भुलाया नहीं जा सकता। यह ठीक है कि उसका बदला एयर स्ट्राइक करके लिया गया, लेकिन आज भी यह प्रश्न जनता को सोचने पर विवश करता है कि आखिर हमारी सीमा को तोड़कर ये आतंकी भारत में घुसे कैसे और इतनी बड़ी वारदात को अंजाम कैसे दे दिया?
आतंकी बनाने में प्रायः यह देखा गया है कि विश्व के जो समृद्ध राष्ट्र हैं, वहां इस तरह आतंकी स्कूल नहीं चलाए जाते। आतंकियों को तालीम देने का काम लगभग उन्हीं देशों में होता है, जहां युवा को अपने भविष्य का कुछ पता नहीं होता, जहां बेरोजगारी में देश उबल रहा होता है। विपन्नता जहां का पर्याय बन चुका होता है, वहीं के युवा गुमराह हो जाते हैं और रोजगार पाने के उद्देश्य से आतंक का रास्ता अपना लेते हैं। उनके लिए जीवन—मरण कोई मायने नहीं रखता। वे अपनी जीवन रक्षा और परिवार को पालने के लिए मजबूरन इस गलत कार्य को अपना लेते हैं। शिक्षा के अभाव में वे इस बात पर फख्र करते हैं कि उनके हाथ में गन है और वह किसी को बातों ही बातों में मौत की नींद सुला सकते हैं। यही तो हुआ तो मुम्बई के ताज होटल पर हमले का, जहां सैकड़ों लोग मौत की नींद सुला दिए गए। एक आतंकी कसाब जिंदा पकड़ा गया, तो उसने इस बात को स्वीकार किया था कि किस मुफलिसी जिंदगी में वह अपने दिन बिता रहा था और कितने कम पैसों के लिए उसने दस आतंकियों के साथ मुंबई पर हमला किया और सैकड़ों निर्दोष को मौत की नींद सुला दिया। ऐसे आतंकी को दूसरे को तड़पते देखकर राहत मिलती है, पर उससे हासिल क्या होता है, इस पर इस तरह के संगठन को विचार करने की जरूरत है कि उसने युवाओं को गुमराह करके क्या हासिल किया? लेकिन क्या इन मुद्दों पर उन्हें विचार करने का मन होगा?
धरती का स्वर्ग कहलाए जाने वाले कश्मीर में एक सुंदर और आलौकिक दर्शनीय स्थल है किश्तवाड़, जहां जिले में तैनात ग्राम रक्षा समूह के दो सदस्यों को अगवा कर मार देने वाले आतंकियों के सफाए के लिए चलाए गए अभियान के दौरान सेना के एक पैरा कमांडो शाहिद हो गए। मुठभेड़ में तीन जवान भी शहीद हो गए। सुरक्षा बलों ने जंगल को घेर रखा है। निश्चित रूप से यह आतंकी जिंदा वापस अपने देश नहीं जा पाएंगे। लेकिन आतंकियों की हिम्मत तो देखिए, जो सीमा पार करके हमारे देश में घुसते हैं और हमारे ही सैनिक और आम जनता को मारकर अपने बिल में घुस जाते हैं।निश्चित रूप से इतनी हिम्मत किसी आतंकी संगठन की नहीं हो सकती कि वह भारतीय सीमा में घुसकर हमारे सैनिकों पर अचानक हमला कर दे। ऐसा करने के लिए उसकी पीठ पर उस देश का हाथ होता है, जो उसे बरगलाकर अपनी जान कुर्बान करने के लिए मजबूर करता है। इस तरह के हमलों की विश्वस्तरीय आलोचना होनी चाहिए और ऐसे राष्ट्र पर अंकुश लगाने के कानूनसम्मत उपाय करके उनसे पीछा छुड़ाया जाना चाहिए। लेकिन, क्या ऐसा हो सकेगा या हमारे प्रशिक्षित सैनिक और सामान्य नागरिक मौत के घाट यूं ही उतरते जाएंगे। फैसला तो देश के शीर्ष नेतृत्व पर बैठने वालों को ही करना पड़ेगा, अन्यथा यह आतंकी संगठन बार—बार सीमा पर उपद्रव करके देश में घुसते रहेंगे और भारत को चुनौती देते रहेंगे।
पिछले दस साल में हुईं हृदयविदारक आतंकी घटनाएं
उड़ी हमला: 18 सितंबर, 2016 को जम्मू-कश्मीर के उड़ी सेक्टर में नियंत्रण रेखा के पास स्थित भारतीय सेना के कैम्प पर हमला किया गया था, जिसमें 19 जवान मारे गए थे।
पठानकोट हमला: दो जनवरी, 2016 को चरमपंथियों ने पंजाब के पठानकोट एयरबेस पर हमला किया था, जिसमें 7 सुरक्षाकर्मी मारे गए थे, जबकि 20 अन्य घायल हुए थे। जवाबी कार्रवाई में चार चरमपंथियों की भी मौत हुई थी।
गुरदासपुर हमलाः 27 जुलाई, 2015 को पंजाब को गुरदासपुर के दीनापुर में हमलावरों ने तड़के ही एक बस पर फायरिंग की और इसके बाद पुलिस थाने पर हमला कर दिया था। हमले में एसपी (डिटेक्टिव) समेत चार पुलिसकर्मी और तीन नागरिक मारे गए थे।
अमरनाथ यात्रियों पर हमलाः 10 जुलाई, 2017 को अमरनाथ जा रहे श्रद्धालुओं पर अनंतनाग जिले में एक चरमपंथी हमला हुआ, जिसमें 7 लोग मारे गए थे।
पुलवामा हमलाः वर्ष 2019 में पुलवामा जिले के लेथपोरा में एक चरमपंथी हमले में 34 सीआरपीएफ जवान मारे गए और कई घायल हुए थे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)