नई दिल्ली : महाराष्ट्र चुनाव के नतीजों में जिस तरह से महायुति ने क्लीन स्वीप किया है, उसने ठाकरे परिवार की राजनीतिक विरासत को खतरे में डाल दिया है. नतीजों से ये साफ हो गया है कि न सिर्फ महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के मुखिया राज ठाकरे का राजनीतिक रसूख खत्म हो गया है बल्कि उद्धव ठाकरे भी अपने पिता के बनाए राजनीतिक साम्राज्य को कायम नहीं रख पाए हैं.विरासत की सियासत ऐतिहासिक मोड़ पर…
बात 2005 की है. राज ठाकरे शिवसेना से बग़ावत कर अलग हो गए थे. तब बाल ठाकरे ज़िंदा थे. राज ठाकरे की बग़ावत के वक़्त बाल ठाकरे की उम्र लगभग 80 साल हो रही थी.
कहा जाता था कि बाल ठाकरे वाला तेवर राज ठाकरे में ही है और अपने चाचा की विरासत के असली दावेदार वही हैं. राज ठाकरे की बग़ावत से बाल ठाकरे दुखी थे और उन्होंने लोकप्रिय मराठी गीत की चंद लाइन कहते हुए राज ठाकरे से लौटने की अपील की थी.मराठी गीत की लाइन थी- ‘या चिमण्यांनो, परत फिरा रे घराकडे अपुल्या, जाहल्या तिन्हीसांजा जाहल्या…’ यानी छोटी गौरैयों को अपने घोंसले में लौट आना चाहिए.
ऐसे में सवाल है कि परिवार के बंटने से जो वोट कट गए हैं या वो एक होकर फिर से सेफ हो सकते हैं. यानी कि सवाल ये है कि क्या बाल ठाकरे की राजनीतिक विरासत को सहेजने के लिए राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे फिर से एक हो सकते हैं या फिर अब असली शिवसेना का जो ठप्पा एक नाथ शिंदे ने अपने कंधे पर लगा लिया है, वो हमेशा-हमेशा के लिए अमिट हो गया है.विरासत की सियासत ऐतिहासिक मोड़ पर…
शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे ने जब अपने बेटे उद्धव ठाकरे को अपना उत्तराधिकारी बनाने की बात शुरू की तो भतीजे राज ठाकरे नाराज हो गए और इतने नाराज हुए कि बाल ठाकरे के रहते हुए ही वो परिवार से अलग हो गए. अपनी पार्टी बनाई और नाम रखा महाराष्ट्र नव निर्माण सेना यानी कि मनसे. 2006 में पार्टी बनाने के बाद साल 2009 में जब विधानसभा के चुनाव हुए तो मनसे को कुल 13 सीटों पर जीत मिली थी. 2014 में राज ठाकरे दो सीटों पर सिमट गए. 2019 में सीटों की संख्या एक हो गई और 2024 में तो राज ठाकरे जीरो हो गए. नेताओं की तो बात छोड़ ही दीजिए, राज ठाकरे के बेटे अमित ठाकरे भी अपना पहला ही चुनाव हार गए.
उद्धव ठाकरे के साथ भी कुछ बेहतर नहीं हुआ. 2019 में बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाले उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री बनने के लिए बीजेपी का साथ क्या छोड़ा, पूरी पार्टी ने ही उद्धव को किनारे लगा दिया. जैसे ही एकनाथ शिंदे को मौका मिला, उन्होंने पार्टी तोड़ दी और बीजेपी के साथ आ गए. वो न सिर्फ मुख्यमंत्री बने बल्कि उद्धव ठाकरे की पूरी राजनीति को ही खत्म कर दिया. 2024 में तो एकनाथ शिंदे ने साबित भी कर दिया कि असली शिवसेना और उसका वारिस ठाकरे परिवार नहीं बल्कि एकनाथ शिंदे हैं.
ऐसे में अब पांच साल तक तो राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे दोनों को ही इसी नतीजे से संतोष करना होगा. अगर उन्हें बाल ठाकरे की विरासत बचानी है, फिर से महाराष्ट्र में शिवसेना का वर्चस्व कायम करना है, फिर से खुद को साबित करना है तो शायद उनकी एकजुटता ही इसमें मदद कर सकती है. आखिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी तो कहते हैं कि एक हैं तो सेफ हैं. परिवार एक रहा तो शायद विरासत भी सेफ रहेगी, वरना तो पार्टी और परिवार के बंटने पर शिवसेना-मनसे के वोट कैसे कटे हैं, 2024 के विधानसभा चुनाव का नतीजा इसका गवाह है.
उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने इस बार 95 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे और जीत केवल 20 सीटों पर मिली जबकि उद्धव ठाकरे से बग़ावत कर बाल ठाकरे की विरासत पर अपनी दावेदारी पेश करने वाले पुराने शिव सैनिक एकनाथ शिंदे ने 81 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे और उन्हें 57 सीटों पर जीत मिली.
बाल ठाकरे के ज़िंदा रहते, जिन्होंने भी शिवसेना छोड़ी या पार्टी से बग़ावत की, वो मातोश्री को चुनौती नहीं दे पाए. राज ठाकरे के अलावा नारायण राणे से लेकर छगन भुजबल तक ने शिवसेना छोड़ी लेकिन एकनाथ शिंदे की तरह कोई चुनौती नहीं दे पाया. लेकिन तब बाल ठाकरे ज़िंदा थे और बीजेपी शिवसेना के मातहत काम करती थी.
जब तक बाल ठाकरे ज़िंदा रहे तब तक बीजेपी की हैसियत छोटे पार्टनर की रही और कोई शिव सैनिक भी उनको चुनौती नहीं दे पाया. लेकिन बाल ठाकरे की मृत्यु के बाद महाराष्ट्र में बीजेपी, शिवसेना से बड़ी हो गई और उद्धव को ऐसी चुनौती मिली कि बाल ठाकरे की विरासत ही उनके हाथ से फिसल गई. मसलन पार्टी का नाम और चुनाव चिह्न तीर-धनुष दोनों छोड़ना पड़ा.
एकनाथ शिंदे की इस जीत से शिवसेना और बाल ठाकरे की विरासत के साथ विचारधारा पर उनकी दावेदारी मज़बूत हुई है.2022 में जब शिंदे ने अविभाजित शिवसेना को तोड़ा था उस वक्त उनके साथ शिवसेना के 40 विधायक थे और कुछ निर्दलीय विधायक थे. उस समय उन्होंने उद्धव ठाकरे की सरकार गिरा दी थी. तब से उद्धव ठाकरे एकनाथ शिंदे को ग़द्दार कहते रहे हैं लेकिन महाराष्ट्र की जनता को इससे बहुत फ़र्क़ नहीं पड़ा.
कई लोग कह रहे हैं कि महाराष्ट्र विधानसभा के चुनावी नतीजे से साबित हो गया है कि कौन असली शिव सेना है और बाल ठाकरे की विरासत का सही उत्तराधिकार कौन है. तो क्या बाल ठाकरे की राजनीतिक विरासत अब परिवार से बाहर शिफ़्ट हो गई है?