Women Reservation Bill Delimitation : केंद्र सरकार 2029 के लोकसभा चुनाव से पहले महिला आरक्षण विधेयक को लागू करने की योजना पर तेजी से काम कर रही है. सूत्रों के मुताबिक, इसके लिए जरूरी परिसीमन की प्रक्रिया को जल्द पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है.
सूत्रों के अनुसार, सरकार चाहती है कि महिला आरक्षण कानून को समय पर लागू करने के लिए जनगणना और परिसीमन कार्य को प्राथमिकता के आधार पर पूरा किया जाए. बताया जा रहा है कि अगले कुछ सालों में परिसीमन आयोग का गठन कर दिया जाएगा और 2026 के बाद से परिसीमन की प्रक्रिया औपचारिक रूप से शुरू की जा सकती है.
देश में साल 2027 में होने वाली जनगणना के बाद लोकसभा और विधानसभा सीटों के परिसीमन की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है. यह परिसीमन न केवल संसद और राज्य विधानसभाओं की सीटों की संख्या में वृद्धि का मार्ग प्रशस्त करेगा, बल्कि महिला आरक्षण को भी लागू करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम होगा.
दरअसल, वर्ष 2023 में संसद से पारित नारी शक्ति वंदन अधिनियम के तहत महिलाओं को लोकसभा और विधानसभाओं में 33% आरक्षण देने का प्रावधान किया गया था. हालांकि, यह आरक्षण जनगणना और परिसीमन के बाद ही लागू किया जा सकता है. केंद्र सरकार की मंशा है कि यह प्रक्रिया वर्ष 2029 के लोकसभा चुनाव से पहले पूरी कर ली जाए ताकि उसी चुनाव से महिला आरक्षण लागू हो सके.
कोविड-19 महामारी के कारण 2021 की जनगणना में काफी विलंब हुआ है और जनगणना आंकड़े गिनती होने के करीब तीन साल बाद आएंगे. इसलिए 2011 की जनगणना के आधार पर भी परिसीमन लागू किया जा सकता है
जनगणना पूरी तरह होगी डिजिटल
जानकारों के अनुसार, इस बार जनगणना पूरी तरह डिजिटल होगी और क्षेत्रवार आंकड़े पहले की तुलना में काफी तेजी से, संभवतः 1 से 1.5 साल के भीतर उपलब्ध हो जाएंगे. इससे परिसीमन आयोग को शीघ्रता से काम करने में सुविधा मिलेगी.
भारत में अंतिम बार व्यापक परिसीमन 2008 में किया गया था, जो 2001 की जनगणना के आधार पर हुआ था. हालांकि, उस परिसीमन में लोकसभा या विधानसभा सीटों की संख्या नहीं बढ़ाई गई थी.
इसकी वजह यह थी कि 84वें संविधान संशोधन (2002) के तहत वर्ष 2026 तक सीटों की संख्या में कोई परिवर्तन नहीं करने का निर्णय लिया गया था, लेकिन इस संशोधन में यह भी स्पष्ट किया गया था कि 2026 के बाद होने वाली पहली जनगणना के आधार पर सीटों में वृद्धि और पुनर्विन्यास संभव होगा.
दक्षिण राज्यों की चिंता का रखा जाएगा ध्यान
एक बड़ा मुद्दा दक्षिण भारतीय राज्यों की चिंताओं को लेकर भी है. दक्षिण के राज्य जनसंख्या नियंत्रण में अपेक्षाकृत सफल रहे हैं, जिसे लेकर दक्षिण भारत के राज्यों ने आशंका जताई है कि उनके संसदीय प्रतिनिधित्व में कमी हो सकती है.
लेकिन सरकार का कहना है कि संविधान की मर्यादाओं के तहत इन राज्यों की हिस्सेदारी में कोई कमी नहीं आने दी जाएगी. जैसा कि पूर्वोत्तर राज्यों और अंडमान-निकोबार जैसे केंद्र शासित प्रदेशों में कम जनसंख्या के बावजूद प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया गया है, वैसा ही मॉडल दक्षिण के लिए भी अपनाया जा सकता है.
2029 चुनाव से पहले प्रभाव में आ सकता है कानून
सरकार की योजना है कि 2029 के आम चुनावों से पहले यह ऐतिहासिक कानून प्रभाव में आ जाए, ताकि संसद में महिलाओं की भागीदारी को और मजबूती मिल सके. सूत्रों का कहना है कि आने वाले महीनों में इस दिशा में कई अहम कदम उठाए जा सकते हैं.