Yoga : परंपरा और पद्धति

Niranjan Srivastava

Yoga : योग एक प्राचीन भारतीय साधना है, जिसकी भूमिका मनुष्य के शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक उन्नयन में अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। योग शब्द संस्कृत धातु ‘युज’ से बना है, जिसका अर्थ है ‘जुड़ना’। इस प्रकार योग का अर्थ है ‘जुड़ना’ या ‘एकजुट होना’। शरीर, मन और आत्मा का जुड़ना ही योग है अर्थात् शरीर, मन और आत्मा के एकीकरण का प्रतीक है योग। योग में विभिन्न प्रकार की शारीरिक मुद्राएँ (आसन), श्वसन क्रियाएँ (प्राणायाम) और ध्यान सम्मिलित हैं। पतंजलि के अनुसार योग के आठ अंग हैं-यम, नियम, आसान, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। योग के इन आठ अंगों में अंतिम तीन अंग (धारणा, ध्यान और समाधि) का महत्त्व सर्वाधिक है। एक स्थल पर इन्हें ‘संयम’ की सामूहिक संज्ञा दी गई है-‘त्रयमेकत्र संयमः’। योग का वृत्त-विंदु है मन।
योग की परंपरा अत्यंत प्राचीन है। इसका इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। कहा जाता है कि प्राचीनतम धर्मों और आस्थाओं के जन्म के बहुत पहले योग का जन्म हो चुका था। योग साधना में भगवान शिव को आदि योगी तथा योग का आदि गुरु माना जाता है। कृष्ण को योगेश्वर कृष्ण तथा महायोगी कहा जाता है। उसके बाद भारत के ऋषियों, महावीर, बुद्ध और विवेकानन्द ने अपनी-अपनी तरह से इसका विस्तार किया। दूसरी शताब्दी में महर्षि पतंजलि ने इस सूत्रबद्ध और व्यवस्थित किया। उन्होंने ‘योगसूत्र’ नामक ग्रन्थ की रचना की जिसमें योग के आठ अंगों (अष्टांग योग) का विशद वर्णन है।
योग से संबंधित सबसे प्राचीन ऐतिहासिक साक्ष्य सिंधुघाटी की सभ्यता से प्राप्त वस्तुओं में मिलता है। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की खुदाई में प्राप्त मुहरों में से कई मुहरों पर योगमुद्रा में आसन लगाकर बैठी आकृतियाँ उत्कीर्ण हैं। योग का वर्णन सर्वप्रथम वेदों में मिलता है,जो सबसे प्राचीन ग्रन्थ माने जाते हैं। ऋग्वेद और अथर्ववेद में योग का उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद की एक ऋचा है-“यस्मादृते न सिध्यति यज्ञो विपश्चितश्चन सधीनां योगमिन्वयति”अर्थात् जो विद्वान बिना योग के कोई कार्य करता है, वह पूर्ण नहीं होता। अथर्वेद में योग शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के साथ आध्यात्मिक विकास के महत्त्वपूर्ण साधन के रूप में वर्णित है। अथर्वेद में योग के माध्यम से रोगों के उपचार और रोकथाम पर जोर दिया गया है।
उपनिषदों में योग का विशद वर्णन मिलता है। इन ग्रन्थों में योग के आठों अंगों पर प्रकाश डाला गया है।कठोपनिषद् में इंद्रियों पर नियंत्रण और मानसिक शांति के लिए योग-साधना आवश्यक बतलाया गया है। श्वेताश्वतरोपनिषद् में योग की उपादेयता का वर्णन करते हुए यह कहा गया है कि योग साधना से जिन पंचमहाभूतों से शरीर का निर्माण हुआ है, उनका उत्थान होता है और योगाग्निमय शरीर प्राप्त होता है और साधक को न कोई रोग होता है, न वृद्धावस्था होती और न उसकी असामयिक मृत्यु होती है। लिंग पुराण में महर्षि व्यास कहते हैं-“सर्वार्थ विषयान्तरात्मनों योग उच्चयते” अर्थात् योग से आत्मा को संपूर्ण विषयों की प्राप्ति होती है। विष्णु पुराण में कहा गया है-“योग: संयोग इत्युक्त: जीवात्म परमात्मने” अर्थात् जीवात्मा और परमात्मा का पूर्णतया मिलन ही योग है। श्रीमद्भागवत गीता में योग को दो तरह से परिभाषित किया गया है कि “सिद्धासिद्धयो समोभूत्व समत्वं योग उच्चयते अर्थात् हर स्थिति-दुख-सुख, लाभ-अलाभ, शीत-उष्ण, शत्रु-मित्र द्वंद्वों में समान भाव रखना ही योग है और “योगः कर्मसु कौशलम्” अर्थात् कर्मों की कुशलता ही योग है। भारतीय दर्शन में तीन तरह के योग बतलाये गए हैं-ज्ञान योग, कर्म योग और भक्ति योग। भगवदगीता में श्री कृष्ण ने इन्हें आत्म-साक्षात्कार और मोक्ष प्राप्ति का साधन बतलाया है।
आधुनिक समय में योग का महत्त्व और बढ़ गया है पद्मश्री डॉ मोहसिन वली, सीनियर फिजिशियन,सर गंगाराम अस्पताल, दिल्ली का कहना है कि आज की लाइफस्टाइल से पैदा होने वाली गंभीर बीमारियों के उपचार के लिए एक रामवाण उपाय है। योग एक चिकित्सा पद्धति, अनुशासन और इलाज है। वर्तमान में अस्पतालों में डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, रेस्प्रेटरी सिस्टम (श्वसन तंत्र) संबंधी गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए योग का इस्तेमाल वैकल्पिक थेरेपी के रूप में किया जा रहा है।
श्री श्री रविशंकर कहते हैं कि योग शरीर के रासायनिक तत्वों को नियंत्रित करता है, जो हमें शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से प्रभावित करते हैं। अध्ययनों में पाया गया है कि योग शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य दोनों को बेहतर बनाता है। यह प्रतिरक्षा तंत्र को बढ़ाता है, तनाव हार्मोन को कम करता है, उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करता है। इसके अलावा, यह शरीर में डोपामाइन के उत्पादन को बढ़ाता है, नशे की लत से उबरने में मदद करता है, मस्तिष्क में ग्रे मैटर को बढ़ाता है और चिंता, अवसाद व अनिद्रा से छुटकारा दिलाता है। इससे भी अधिक, यह आपको वर्तमान क्षण में वापस लाता है, जहाँ आप नकारात्मक विचारों को छोड़कर आनन्द का अनुभव कर पाते हैं।स्वामी निरंजनानन्द सरस्वती,परमाचार्य, योग संस्थान, मुंगेर का कहना है कि योग एक विज्ञान सम्मत जीवन शैली है जो तनाव जनित रोगों के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। योग के माध्यम से न केवल बीमारियों से मुक्त हो सकते हैं, बल्कि एक शांतिपूर्ण और सार्थक जीवन जी सकते हैं। योग का उद्देश्य केवल शारीरिक स्वास्थ्य को प्राप्त करना नहीं है, बल्कि मन, शरीर और आत्मा को एक साथ लाना है। योग, जिसमें आसन, प्राणायाम और ध्यान शामिल हैं, न केवल शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है, बल्कि मानसिक और भावनात्मक कल्याण भी प्रदान करता है।
देश में कई योग संस्थान हैं, जिनमें 1917 में परमहंस योगानन्द द्वारा राँची में स्थापित योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया, मुंबई में 1918 में श्री योगेंद्र द्वारा स्थापित
द योग इंस्टीट्यूट, मुंगेर, बिहार में 1964 में स्थापित
बिहार स्कूल ऑफ योग, डॉ० एच आर आनन्द द्वारा 1986 में बेंगलुरु में स्थापित स्वामी विवेकानन्द योग अनुसंधान संस्थान और 2006 में हरिद्वार में स्वामी रामदेव द्वारा स्थापित पतंजलि योगपीठ प्रमुख हैं। विश्व भर के लोग योग को अपना रहे हैं। आज 21 जून, 2025 को 11वां अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जा रहा है, जिसका थीम है ‘one earth, one health’ अर्थात् ‘एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य’। देश में मुख्य आयोजन आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम स्थित योग संगम में संपन्न हुआ।

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