उमानाथ लाल दास
Operation Sindoor : कांग्रेस की आसक्ति के घटाटोप में निंदाये, ऊंघते लोगों को आज शशि थरूर नहीं सुहा रहे, क्योंकि थरूर कांग्रेस के गले की फांस बन गये हैं। पूरी दुनिया को आतंकवाद पर भारत के जीरो टॉलरेंस का संदेश देने के लिए देश के चुनिंदा सांसदों की एक टीम भारत सरकार ने बनायी है। 58 धुरंधरों की इन सात टीमों में डीएमके की कनिमोझी करुणानिधि, एआइमिम्स के असदुद्दीन ओवैसी, जदयू के संजय झा, टीएमसी के यूसुफ पठान के अलावा भाजपा बौद्धिक प्रकोष्ठ के मंत्री-सांसद व राजनयिक तो हैं ही, साथ कांग्रेस के पूर्व-अपूर्व दिग्गज भी शामिल किए गए हैं। राष्ट्रीय धर्म के नाते यह पक्ष-विपक्ष से परे वक्त का तकाजा है और टीम मेंबरान बखूबी अपने किरदार की संजीदगी से वाकिफ हैं । पर रवीश, अंजुम, नेहा सिंह से लहालोट कांग्रेस को यह नहीं पच रहा कि टीम के लिए उसने जो नाम सुझाए थे, उनमें से एक भी इन 58 लोगों में शामिल नहीं। टीम में शामिल कांग्रेस के पूर्व-अपूर्व नेता हैं शशि थरूर, सलमान खुर्शीद, गुलाम नबी आजाद, सरफराज अहमद।
कांग्रेस को इस पर घोर आपत्ति है कि उसके सुझाए नाम को छोड़ उसकी नापसंदगी की लिस्ट उठा ली गयी हैं और इस बारे में उससे कोई मशविरा तक नहीं किया गया। कांग्रेस ने टीम के लिए आनंद शर्मा, गौरव गोगोई, सैयद नासिर हुसैन व अमरिंदर सिंह राजा वडिंग का नाम प्रस्तावित किया था। अब कांग्रेस इससे घुट रही है कि जिन्हें वह पार्टी में पूछ नहीं रही थी, वे देश की इमेज बिल्डिंग पार्लर बना ही नहीं दिये गये, बल्कि बेहद प्रभावी ढंग से अपनी भूमिका भी अदा कर रहे। पार्टी की जरूरत तो बाद में भी देख ली जाएगी, अभी तो देश के काम आने की जरूरत को समझना होगा। राहुल की समझाइश का यह लिबरल गैंग उन्हें यह समझने नहीं देगा। कांग्रेस को जरूरत है लालू-मुलायम जैसे समर्थक और नेहा सिंह राठौड़, सुप्रिया श्रीनेत, कन्हैया, रवीश, उर्मिलेश, आशुतोष, दीपक शर्मा, अभिसार शर्मा, नवीन कुमार के गैंग की। न वह इस टेस्ट लेवल से ऊपर उठेगी और न ही सही लोग उसे मिलेंगे।
विदेशों में चुनाव आयोग को कंप्रोमाइज्ड (बोस्टन, 2025), भारतीय लोकतंत्र को ब्रोकेन (अमेरिका, 2024), भारत में फुल स्केल असाल्ट (ब्रुसेल्स, 2023), भारतीय संस्थाएं परजीवी (लंदन, 2022), मोदी देशभक्त नहीं (जर्मनी, 2018), भारत में डर व नफ़रत का माहौल (सिंगापुर, 2018) सरकार नफ़रत फैलाने में बिजी (बहरीन, 2018),भारत में सहिष्णुता खत्म (अमेरिका, 2017) जैसा बयान देने वाले जिस राहुल को देश-काल का मतलब पता नहीं तो उनकी संरक्षित-पोषित पार्टी से इस समझ और नजरिया की उम्मीद कैसे की जा सकती है। एक बच्चे को भी स्कूल, घर और बाजार में बोली जाने वाली भाषा, उसके कंटेंट और प्रेजेंटेशन का मतलब और महत्व समझ में आता है।
और अंत में : इस टीम में अप्रस्तावित थरूर को शामिल करने की कांग्रेस की आपत्ति से अधिक बुद्धिजीवियों का एक खेमा कुछ ज्यादा ही परेशान है। इनमें दिग्गज पत्रकार देवेंद्र सुरजन, साहित्यकार रति सक्सेना, प्रखर विधिवेत्ता संविधानविद कनक तिवारी कुछ ज्यादा ही परेशान और निराश हैं। उन्हें इस बात की खुशी और गर्व नहीं है कि चुनौती के क्षण में यह प्रखर मेधा एकजुट है देश के सवाल को आगे कर। इस सेलेक्शन-रिजेक्शन से कांग्रेस के पेट में मरोड़ आ रही तो इन्हें भी परेशानी हो रही है। माननीय, टीम में सिर्फ थरूर नहीं, 58 विभूति हैं। थरूर तो सिर्फ पांच देशों की यात्रा करने वाली टीम की अगुआई कर रहे हैं। एक टीम में ओवैसी भी हैं, तो दूसरी में सलमान खुर्शीद, गुलाम नबी आजाद भी हैं और तो और क्रिकेटर व टीएमसी नेता यूसुफ पठान भी हैं इनमें। जैसे संविधान बनाने वालों में सिर्फ अंबेडकर ही नहीं दूसरे भी थे, तो यहां भी थरूर के अलावे जदयू से संजय झा, भाजपा से रविशंकर प्रसाद, आहलूवालिया, निशिकांत ठाकुर समेत कई लोग हैं। जनतंत्र की खुशबू, उसकी ताकत उसकी सामूहिकता में है। नेतृत्व थोपने, इमरजेंसी लगाने और संविधान से खेलनेवाली कांग्रेस संविधान बचाओ रैली तो निकाल सकती है, पर जनतंत्र की सामूहिकता समझ में नहीं आएगी। उसके इस स्वांग पर फिदा लिबरल जत्था का तो यह समझना और भी मुश्किल है।
