Mahakumbh 2025 : इसमें रत्ती भर भी संदेह नहीं कि दिल्ली की भगदड़ रेलवे की चूक का नतीजा है। इसकी पूरी जिम्मेदारी प्रशासन की है, सत्ता की है। अंतिम समय में प्लेटफॉर्म बदलने के कारण लगने वाली दौड़ से हम सभी परिचित हैं, कभी न कभी हम आप दौड़े ही होंगे। इसे ठीक करने की दिशा में कभी काम नहीं हुआ। रेलवे सदैव धन उगाही करने में ही लगा रहा।
संदेह इस बात में भी नहीं कि हमेशा की तरह जाँच की लीपापोती होगी, कुछ निचले लोग दंडित होंगे और सब पूर्ववत चलने लगेगा। माननीय मंत्री जी अपने ऊपर कोई जिम्मेदारी नहीं लेंगे, बल्कि इसके लिए क्षमा तक नहीं मांगेंगे। जैसे उनका दुख व्यक्त कर देना ही देश पर बहुत बड़ा उपकार हो… यही सत्ता का चरित्र होता है, यह कभी नहीं बदलेगा। हम आप भी चार दिन में इस दुर्घटना को भूल कर दूसरे मुद्दों में उलझ जाएंगे। यही जनता का चरित्र है, यह भी नहीं बदलेगा…
पर इसी के बहाने कुछ लोग कहने लगे हैं कि कुम्भ के लिए देश में ‘उन्माद’ पैदा किया गया। लोग उन्माद में आ कर प्रयाग की ओर भागे जा रहे हैं। पर क्या सचमुच कुम्भ में जा रही भीड़ ‘उन्माद’ में है? नहीं।
कुम्भ मेले में सदैव विशाल भीड़ जुटती रही है। लोकतांत्रिक भारत से पूर्व अंग्रेज शासित भारत में भी विशाल भीड़ होती रही है। यह भीड़ तब भी मंद नहीं हुई जब यात्रा के लिए जजिया देना पड़ता था।
इस बार जो भीड़ कई गुना बढ़ी है उसका कारण आम जनता में आई सम्पन्नता है, चमचमाती सड़कें हैं, बढ़ी हुई व्यक्तिगत सुविधाएं हैं। कुम्भ नहाना पारंपरिक हिन्दू की सबसे बड़ी इच्छा रही है, पर पहले यह यात्रा उतनी सरल नहीं होती थी जितनी आज है। आज सबके पास पैसा है, सो सभी जा रहे हैं। अच्छी सड़कें हैं, अपनी गाड़ी है, दो दिन की छुट्टी में ही नहा आना सम्भव हो रहा है, इसलिए वीकेंड में सभी निकल पड़ते हैं। इसमें उन्माद कहाँ है?
सरकार यदि प्रचार नहीं भी करती, तब भी भीड़ इतनी ही होनी थी। जब दिल्ली में औरंगजेब बैठता था, तब भी हिन्दू जनता कुम्भ में भीड़ लगाती थी। आस्था सत्ता का मुँह देख कर अधिक या कम नहीं होती।
इस भीड़ में उन्माद होता तो वह बारह बारह घण्टे के जाम को चुपचाप नहीं सहती। भीड़ उन्मादी होती तो पच्चीस पच्चीस किलोमीटर पैदल चलने के बाद भी गङ्गा मइया का दर्शन पाते ही सब भूल नहीं जाती। लोग उन्मादी होते बीस रुपये के पानी बोतल के लिए अस्सी रुपये दे कर चुपचाप आगे नहीं बढ़ते।
सत्ता से प्रश्न करना आपका अधिकार है। जिस मंच से सम्भव हो, इस अव्यवस्था पर सत्ता का गला पकड़िए, यह किया ही जाना चाहिये। लेकिन इस बहाने तीर्थयात्रियों को उन्मादी कहने की धूर्तता मत कीजिये। तमाम बुरी घटनाओं के बाद भी यह भीड़ सबसे अनुशासित भीड़ है।
Mahakumbh 2025 : भीड़ सबसे अनुशासित

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